दूध व छाल उपयोगी वृक्ष
चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
(महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत )
खंड – १ सूत्रस्थानम , पैलो अध्याय ११२ बिटेन – ११९ तक
अनुवाद भाग - १५
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों वर्जणो पुठ्याजोर )
-
!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
-
दूध कर्म्म -
यु दूध नस्य कर्मंम , अवगाहन (चिंतन मनन ) क्रिया म, आलेपन म ,उकै (वमन ) म , आस्थापन म , बस्ति म , विरेचन म , स्नेह म , वाजीकरण आदि म उपयोग हूंद। िखम आठ दूधों समय गुण कर्म्म तै सामान्य रूपम बताये गे अगवाड़ी प्रत्येक दूध क बारे म कर्मानुसार बताये जाल ( सूत्र स्थान अध्याय २७ ) I ११२ , ११३
अब शोधन म बुले गे छह वृक्षों मोदी तीनुं दूध अर तीनूं त्वचा ग्रहण करे जांद। यूं मेड प्रथम तीन वृक्ष फलनि अर मूलनी वनस्पतियों से भिन्न छन। ऊंक नाम - स्नुही (धोर, सेहुंड ) , अर्क ( आक ) अर अश्मंतक (मूँज जन )। अश्मंतक कु दूध उल्टी (वमन ) म , स्नूही क दूध विरेचन म ार आक को दूध द्वी -विरेचन व वमन म उपयोग करे जाण चयेंद। ११४ – ११५
दुसर तीन वृक्ष छन जौंकि छाल (त्वचा ) हितकारी छन। वूं वृक्षों नाम – पुतीक (करंज ), कृष्णगंधा, अर तिल्वक (लोध्र ) छन । यूं मादे करंज अर लोध्र की छाल विरेचन म उपयोग हूंद। अर कृष्णगंधा की छाल परिसर्प (वीमर्ष , एक्जिमा , त्वचा रोग ) म शोथ , अर्श रोग , दद्रु (दाद ), विद्रधि , गण्डमाला , कोढ़ , अर अल्जी नाना रोगों उपयोग हूंद। ११६- ११७ , ११८
यी मथ्याक वृक्षों तैं शोधनकारक जाणो।
उपसंहार -
फलनि १९ , मूलनी १६ , स्नेह ४ , लवण ५ , मूत ८ , दूध ८ , अर शोधन वृक्ष ६ (परिष्करण म उपयोग ), जौंक दूध व छाल का आंद वु बुले गेन । ११९
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी फाड़ीम
चरक संहिता कु एकमात्र विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद ;
Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charka Samhita, first-Ever Garhwali Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal, First ever Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of Charak Samhita
Thank You