भरत नाट्य शास्त्र अध्याय – 6, 7 का : रस व भाव समीक्षा - ५८
s = आधी अ
भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद आचार्य – भीष्म कुकरेती
तमभिनयेत्संक्षिप्तंगोत्कम्पनवेपथुस्तम्भरोमांचगद्गदप्रलापादिभिरनुभावै:।
गढ़वाली अनुवाद व व्याख्या – -
अनुवाद -
त्रास भावो पाठ खिलणो कुण अंग बटण /अंग संकुचित करण , कमण , खड़ा -खड़ी -बैठ्या बैठी (जख्म च तखमी) /स्तम्भित हूण , रोमांचित हूण , कंठ अवरुद्ध हूण अर लम्बो रूणो करतब दिखाए जांदन।
व्याख्या -
भंयकर बादल गिरजणि , बाघौ गिरजणि , बिजली चमकण , आदि सूणि , गैणा भ्यूं पड़न देखि जु डौर -भौ पैदा हूंद वो त्रास च। डौरन मनिख अपण अंग बौटि /संकुचित लीन्दो , मुट्ठी बौटि लींद , जगा जगा रै जांद , अर जीब लड़खड़ाइ जांद .
गढ़वाली म त्रास भाव उदाहरण -
रणभूतों , भादों मास म जब बरखा , बिजली कड़कणी हो तब कृष्ण जन्म जन लोक नाटकों म त्रास भाव दिखाएं जांद। या जब कबि गाँव म बाग़ आतंक का लोक नाटक खिले जावन जन कि गोठम बाग़ आण अर बागौ गिरजणि लोक नाटक खिले जावो तो त्रास भाव को अभिनय करे जांद .
भरत नाट्य शास्त्र अनुवाद , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य शास्त्रौ शेष भाग अग्वाड़ी अध्यायों मा
गढ़वाली काव्य म त्रास भाव ; गढ़वाली नाटकों म त्रास भाव ;गढ़वाली गद्य म त्रास भाव ; गढवाली लोक कथाओं म त्रास भाव
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