भरत नाट्य शास्त्र अध्याय – 6, 7 का : रस व भाव समीक्षा - 60
s = आधी अ
भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद आचार्य – भीष्म कुकरेती
सत्वं नाम मन प्रभवम् I
मनस: समाधौ सत्त्वनिष्पत्तिभर्वति।।
७. ९३ कु परवर्ती गद्य )
स्तम्भ: स्वेदोsथ रोमांच: स्वरभेदोsथ वेपथुः I
वैवर्ण्यमश्च प्रलय इत्यष्टो सात्त्विका मता: । ।
०७। ९४ )
गढ़वाली अनुवाद व व्याख्या – -
अनुवाद – सत्त्व कु संबंध मन से च , जन कर्ता की समाधि मन से जुड़ जान्दि , तब सात्विक भावों उतपत्ति हूंद (७, ९३ )
स्तम्भ , स्वेद, रोमांच , स्वर भंग, वेपथु, वैवर्ण्य , अश्व, अर प्रलय नामौ आठ स्वात्तिक भाव हूंदन। (7.94)
भरत नाट्य शास्त्र अनुवाद , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य शास्त्रौ शेष भाग अग्वाड़ी अध्यायों मा
गढ़वाली काव्य म भाव ; गढ़वाली नाटकों म भाव ;गढ़वाली गद्य म भाव ; गढवाली लोक कथाओं म भाव
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