क्या खाण , क्या नि खाण अर कथगा खाण
चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
(महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत )
खंड – १ सूत्रस्थानम , पंचौं अध्याय , ६ बिटेन १२ तक
अनुवाद भाग - ४०
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों वर्जणो पुठ्याजोर )
-
!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
–
उचित मात्रा म खायुं खाणा सरैल अर स्वास्थ्य तै नि बिगाड़दो अपितु उपयोग करण वळ मनिखौ बल ,वर्ण (काँटी रंग), सुख,अर आयु युक्त करदो। इलै भोजन उचित मात्रा म इ करेण चयेंद। ६ ।
इलै खाणो उपरान्त भारी पिट्ठी से बण्यां चौंळ , चिवड़ा कबि नि खाण चयेंद। उचित मात्रा म खाणा खाणो उपरांत बि यूं पदार्थों तै नि खाण चयेंद। भूक हूण पर बि यूं पदार्थों तै मात्रा म इ खाण चयेंद।
सुंक्यूं मांश,सुक्युं शाक कचरी /कमल कंद व कमल ककड़ी निरंतर उपयोग नि करण चयेंद। किलैकि यि पदार्थ गुरु छन। इनि रोगी पशु, दुर्बल पशु का मांश बि नि खाण चयेंद। कूर्चिक अथवा छांचौ दगड़ पकायुं दूध,छाचौ दगड पकायुन दूधै मलै (किलाट ) , सुंगरौ- गोर -भैंसों मांश ,माछ,दही, उड़द, शूक धान्य (ऊर्जा दिंदेर ) ,जई यूं तैं निरंतर नि खाण चयेंद। ७-९ ।
साठी चौंळ , शालि, मूंग,सैंधा लूण,औंळा , जौ, बरखापाणि, दूध , घी , मिरग,शहद, को प्रयोग अग्नि बल अनुसार निरंतर प्रयोग करन्द तैं उचित मात्रा ध्यान आवश्यक च। १० ।
रोगुं उतपति म प्राकृतिक नियमों अवहेलना (प्रज्ञापराध ) , परिणाम व आसात्म्येन्द्रियार्थ ( एटीएम भोगी , आत्म निर्भर , घुन्ना , अलग, स्व केंद्रित ) संयोग यी तीन कारण छन। इलै यूं तैं छोड़ि शेष सब करण चयेंद। यूंको सेवन नि करण चयेंद, यूंसे बचण चयेंद । इन करण से भावी रोग नि हूंदन। ११ ।
स्वास्थ्यो दृष्टि से अंजन व व शारीरिक कार्य व गुण की व्यख्या करला। १२ ।
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी फाड़ीम
चरक संहिता कु एकमात्र विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म रोग निदान , आयुर्वेदम रोग निदान , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charka Samhita, First-Ever Garhwali Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal, First ever Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of Charak Samhita
Thank You