भरत को नाटक म बिघ्न बाधा
भरत नाट्य शाश्त्र अध्याय १ , पद /गद्य भाग ६४ बिटेन ७६ तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग - ८४
s = आधा अ
( ईरानी , इराकी , अरबी शब्द वर्जना प्रयत्न )
पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
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गढ़वळि म सर्वाधिक अनुवाद करण वळ अनुवादक आचार्य – भीष्म कुकरेती
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अब जब नाटक म दैत्यों ार दानवों हत्त्या संबंधी दृश्य मंचन शुरू ह्वे तो जु बिनबुलयां दैत्य अपण नेता बीरुपक्ष दगड़ अयां छा ऊंन बिघ्न आत्माओं तै उकसाण शुरू कर दे अर वीरुपक्षन बोलि, “ अगनै आवो ! हम तै ये नाट्य मंचन सहन नि करन। ६४, ६५ . । .
तब बिघ्न करण वळ आत्मा अर दैत्यों न अभिनेताओं /नाट्य कर्मियों क संभाषण, गति अर यादास्त तै पक्षाघात करवाई दे । ६६ ।
यूं घाटों /घावों तै देखिक इंद्र ध्यम म बैठ अर क्या द्याख कि सूत्रधार अर अभिनेता बेसुध व जड़ पड्यां छन जु बिघ्न करता /बुरी आत्माओं से घिर्यां छा। ६७, ६८ ।
तब इंद्र क्रोध म उठ अर गहणो से युक्त ध्वज उठायी अर तब इन्द्रन दस्यु अर बिघ्न कराउ आत्माउं जु उख पण छा तो तै जरजरा से मार। ६९ , ७० ।
जब सब बिघ्नकर्ता आत्मा अर दैत्य मारे गेन , तब देवताओंन पुळे क (प्रसन्न ) बोलि ,” हे भरत ! त्वे तैं एक दिव्य शस्त्र मिल गए ये से सब नाटक का दुश्मन मारे गेन तो एक नाम बि जरजरा नाटक बुले जाल। ७१ -७३ ।
” अन्य शत्रु , ! जु बि अभिनेताओं तै डराल ऊंक बि यी हाल होलु। ” ” देव गण ! यु जरजरा शस्त्र अभिनेताओं रक्षा कारल “। ७५- ७६ ।
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भरत नाट्य शास्त्र अनुवाद , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य शास्त्रौ शेष भाग अग्वाड़ी अध्यायों मा
भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of Bharata Natyashastra in Garhwali , प्रथम बार जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक ) के कुकरेती द्वारा भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,
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