नाट्य मंचन हेतु नाट्यमंडपै स्थापनाs अर रक्षा आवश्यकता
भरत नाट्य शाश्त्र अध्याय १ , पद /गद्य भाग ७६ बिटेन ९५ तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग - ८५
s = आधा अ
( ईरानी , इराकी , अरबी शब्द वर्जना प्रयत्न )
पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
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गढ़वळि म सर्वाधिक अनुवाद करण वळ अनुवादक आचार्य – भीष्म कुकरेती
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तब इंद्र महोत्सव / ध्वज महोत्सव का अवसर पर दुबर नाट्य प्रयोग का अवसर पर वो बिघ्नी पुनः बिधन डाळण अर मेरी हत्त्या करणों ध्येय से त्रास दीण मिसे गेन। तब वूं दैत्यों कार्य तै बिघ्नकारी जाणी मि बरमा श्री म ग्यों। ७६-७७।
तब मीन ब्रह्मा श्री कुण बोलि -भगवन ! यी बिघ्नी नाट्य बिणास करण पर लग्यां छन। इलै हे भगवन तुम रक्षा प्रबंध करणै कृपा कारो। ७८ ।
( तब मेरी प्रार्थना सूणि ) बरमा श्रीन विश्वकर्मा से बोली – हे महामते ! तुम सबि लक्षणों से युक्त एक नाट्यशाला निर्माण कारो। तब विश्वकर्मा न थुड़ा समौ म यि शुभ , महाविस्तृत अच्छा लक्षण वळ नाट्यग्रिग रची अर वो बरमा श्री क सभा म उपस्थित ह्वे हथ जोड़ि बुलण लगिन – हे देव ! नाट्य ग्रह तैयार च , तुम वै तै देखि ल्यावो। ७९ -८१ ।
तब बरमा श्री , इंद्र अर हौर सबि देव गण नाट्यमंडप दिखणो शीघ्र से शीघ्र उना ऐना। तब तै नवा नाट्यगृह देखि बरमा श्री डिवॉन से बुलण लगिन – तुम सब तै अपण अपण अंशों से ये नाट्यमंडपौ रक्छा करण चयेंद। ८२, ८३ ।
अर नाट्यमंडपौ रक्छा बान जूनि (चन्द्रमा ) विशेष रूप से नियुक्त करे गे। चर्री दिशाओं रक्छा कुण वीं दिशा का लोकपालों अर विदिशाओं (कोण दिशाओं ) रक्छा कुण मरुद्गणुं तै नियुक्र कार। नेपथ्य भूमि रक्षा कुण मित्र अर शून्य /खाली स्थान रक्छा कुण वरुण नियुक्त कार । वेदिका (रंगभूमि ) रक्षा कुण अग्नि,अर वाद्य यंत्रों रक्षा कुण सबि दिबता नियुक्त करे गेन। स्तम्भों निकट का वास्ता सबि चतुर्वर्ण (ब्रह्मण , क्षत्रिय , वैश्य व छुद्र ) तै विशेष रूप से नियुक्त करे गे। स्तम्भों मध्यवर्ती भागों रक्षा बान आदित्य अर रूद्र देव स्थापित ह्वेन। बैठकों रक्छा कुण भूतगण , मथ्या अटारी कुण अप्सरा अर शेष स्थलों की रक्छा कुण यक्षणियूं , अर भ्यूंतल (floor ) की रक्छा कुण सागर तै नियुक्ति कार। नाट्यसालों रक्छा कुण कृतांत काल अर पैथरा द्वारों कुण अनंत अर वासुकि की नियुनाट्य प्रारम्भ म रंगमंच मध्य क्ति करे गे। देळी पर यमदण्ड की नियुक्ति करे गे अर वांको ंथी शूल स्थापित करे गे। नियति अर मृत्यु द्वी देवता द्वारपाल का रूप म नियुक्त ह्वेन। रंगपीठ रक्षार्थ महेंद्र अफु स्थित ह्वेन। मताचरणी म दैत्य नाशी विद्युतै स्थापना ह्वे , अर मताचरणी क चर्री स्तम्भों की रक्षार्थ भूत , यक्ष , पिशाच अर गुह्यकों नियुक्ति ह्वे। जर्जरम दैत्य नाशी बज्र स्थापित करे गे अर वैक खुट्टों म अपरिमित शक्तिसंपन देवगण की स्थापना ह्वे। जर्जरै पैलो शीर्षम बरमा की , दुसरम शिव की , तिसरम विष्णु की , चौथ म स्कंध अर पंचों म शेष , वासुकि अर तक्षक जन महासर्प स्थापित करे गेन। ये प्रकार विघ्न नाशौ बान विभिन्न भागों म देवगण की स्थापना करे गे. ८४-९४ ।
रंगमनवः का मध्यम स्वयं बरमा स्थित ह्वेन। इलै नाट्य शुरुवात म रंगमंच मध्य (बरमा की पूजा बान ) पुष्प चढ़ाये जांदन। ९५ ।
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भरत नाट्य शास्त्र अनुवाद , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य शास्त्रौ शेष भाग अग्वाड़ी अध्यायों मा
भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of Bharata Natyashastra in Garhwali , प्रथम बार जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक ) के कुकरेती द्वारा भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,
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