धूम्रपानौ आठ काल , लक्षण
चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
(महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत )
खंड – १ सूत्रस्थानम , पंचौं अध्याय , ३१ बिटेन – ३६ तक
अनुवाद भाग - ४३
गढ़वाली म सर्वाधिक अनुवाद करण वळ अनुवादक - भीष्म कुकरेती
( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों वर्जणो पुठ्याजोर )
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!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
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मुख से धुंवापान का समय ब्रह्मा श्रीन बुल्यां छन किलैकि यूं समौ वात अर कफ प्रकोप दिखे जांद। हौर समौ इथगा प्रकोप नि दिखे जांद -
नयाणो उपरान्त, भोजन करणो उपरान्त , छिंकणो उपरान्त नाक , जीब साफ़ करणो परान्त, नस्य नसावर ) लेका , अंजन लीणो उपरान्त , मन जब पुळ्याणु हो , बिजण पर धूम्र पान लीण चयेंद। ये प्रकार से गौळ से मथि वातजन्य अर कफजन्य रोग नि हूंदन।
शीत गुणो कारण वायु कुपित हो त वातजन्य व्याधि हूंदन। इन अवस्था म स्नेहिक (घी जन मुलैम ) धुंवा लीण चयेंद . जब सरैल रखो हो तो रुखो हर्ता स्नेहिक धुंवा लीण चयेंद। कफ तब हूंद जब सरैल म रुखा का आभाव हूंद। इलै कफ नाशौ बान वैरेचनिक धुंवा लीण चयेंद। तीन प्रकारौ धूम्रपान म नौ घूँट सीमित करे गेन अर्थात धूम्रपान म नौ घूंट से अधिक घूंट नि लीण चयेंद। ३१-३३ ।
उन त धूम्र पान समय आठ बताये गेन, तथापि बुद्धिमान तै अपण स्राईलो दोष वृद्धि, क्षय आदि विचार कौरिक द्वी समय ही धूम्र पान लीण चयेंद। स्नेहिक धुंवा दिनम एक समय, वैरेचिक धूम्रपान तीन या चार दैं इ लीण चयेंद बिंदी ना। ३४।
सम्य धूम्रपाना लक्छ्ण -
हृदय /छाती , गौळ ,गौळौ मथ्या भाग , इन्द्रियां (आंख , नाक , कंदूड़ ) म स्वछता कु आभास हूण , मुंड हळको लगण , , दोष- वात , पित्त , कफ जनित दोषों शान्ति कुण यी सम्यक प्रकार से पियों धुंवा का लक्षण छन। ३५।
बिंडी धूम्रपानौ लक्छण -
बैरो हूण , काणों या हीन दिखेण , गूंगापन , स्वर भेद वृद्धि या जीब से नि बुलेण , रक्तपित्त विकार ,भरम , रिंग उठण , यी उचित समय पर धूम्रपान नि करण या बिंडी मात्रा म धूम्रपान लीण से हूंदन। ३६।
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
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