होने दो , होने दो
आज विचरो का मंथन
विचारो से उत्पन होगी क्रांति
जग करेगा उसका अभिनन्दन !
सुना है की राजधानी
उंचा सुनती है
सता में बैठे लोग
अंधे,गूंगे, बहरे होते है
अब अंधे, गुंगो को ..
रहा दिखानी होगी
उनसे उनके ही राग में
उनसे बात करनी होगी
करना होगा दूर हमको
उनका वो गुंगा/अंधापन … होने दो होने दो ..
भूखा – भूखा न सोयेगा अब
अधिकारों की बात करेगा
खोलेगा राज वो अब उन
पतित भ्रष्ट , भ्रष्टा चारो का
हटो ह्टो, दूर हटो, है
ग्रहण करेगी जनता
आज राज सिंघाशन …. होने दो होने दो
हासिये पर हो तुम
जनता का रथ मत रोको
बडने दो उसको उसके लक्ष्य तक
मत उसको टोको
रोक न पावोगे प्रभाऊ उसका
गर बिगड़ गई वो
सांस लेना होगा तुमको दूभर
गर बिफर गई वो …
भुलोमत , मतभूलो
की , जनता है जनार्धन …. होने दो …
आम पथों से राज पथ तक
बस एक ही होगा नारा
हक़ दो, हक़ दो …हटो
है राज हमारा …….
एक ही स्वर में नभ गूंजेगा तब
स्वीकार नही है , भ्रष्टो का शाशन .. होने दो …
Thank You