एक बार चम्पावत के राजा झालुराई ने संतान सुख के लिये भैरव पूजा का आयोजन किया और भगवान भैरव को प्रसन्न करने का प्रयास किया। एक दिन स्वप्न मैं भैरव ने इन्हे दर्शन दिए और कहा – तुम्हारे भाग्य मैं संतान सुख नही है – मैं तुझ पर कृपा कर के स्वयं तेरे घर मैं जन्म लूँगा, परन्तु इसके लिए तुझे आठवीं शादी करनी होगी,क्योंकि तुम्हारी अन्य रानियाँ मुझे गर्भ में धारण करने योग्य नही हैं। राजा यह सुनकर प्रसन्न हुए और उन्होंने भगवान भैरव का आभार मानकर अपनी आठवीं रानी प्राप्त करने का प्रयास किया ।
एक दिन राजा झालुराई शिकार करते हुए जंगल में बहुत दूर निकल गए। उन्हें बड़े जोरों की प्यास लगी। अपने सैनिकों को पानी लाने का निर्देश देते हुए वो प्यास से बोझिल हो एक वृक्ष की छाँव में बैठ गए। बहुत देर तक जब सैनिक पानी ले कर नही आए तो राजा स्वयं उठकर पानी की खोज में गए। दूर एक तालाब देखकर राजा उसी ओर चले। वहाँ पहुंचकर राजा ने अपने सैनिकों को बेहोश पाया। राजा ने ज्योंही पानी को छुआ उन्हें एक नारी स्वर सुनाई दिया – यह तालाब मेरा है – तुम बिना मेरी अनुमति के इसका जल नही पी सकते। तुम्हारे सैनिकों ने यही गलती की थी इसी कारण इनकी यह दशा हुई। तब राजा ने देखा – अत्यन्त सुन्दर एक नारी उनके सामने खड़ी है। राजा कुछ देर उसे एकटक देखते रह गए तब राजा ने उस नारी को अपना परिचय देते हुए कहा – मैं गढी चम्पावत का राजा झालुराई हूँ और यह मेरे सैनिक हैं। प्यास के कारण मैंने ही इन्हे पानी लाने के लिए भेजा था। हे सुंदरी ! मैं आपका परिचय जानना चाहता हूँ, तब उस नारी ने कहा की मैं पंचदेव देवताओं की बाहें कलिंगा हूँ। अगर आप राजा हैं – तो बलशाली भी होंगे – जरा उन दो लड़ते हुए भैंसों को छुडाओ तब मैं मानूंगी की आप गढी चम्पावत के राजा हैं ।
राजा उन दोनों भैसों के युद्ध को देखते हुए समझ नही पाये की इन्हे कैसे छुड़ाया जाय। राजा हार मान गए। तब उस सुंदरी ने उन दोनों भैसों के सींग पकड़कर उन्हें छुडा दिया। राजा उस नारी के इस करतब पर आश्चर्यचकित थे – तभी वहाँ पंचदेव पधारे और राजा के सामने कलिंगा का विवाह प्रस्ताव रखा। पंचदेवों ने मिलकर कलिंगा का विवाह राजा के साथ कर दिया और राजा को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया।
रानी कलिंगा अत्यन्त रूपमती एवं धर्मपरायण थी। राजा उसे अपनी राजधानी धूमाकोट में रानी बनाकर ले आए। जब सातों रानियों ने देखा की अब तो राजा अपनी आठवीं रानी से ही ज्यादा प्रेम करने लग गए हैं, तो वे सौतिया डाह एवं ईर्ष्या से जलने लगीं। कुछ समय बाद यह सुअवसर भी आया जब रानी कलिंगा गर्भवती हुई। राजा की खुशी का कोई ठिकाना न था। वह एक-एक दिन गिनते हुए बालक के जन्म की प्रतीक्षा करने लगे। पूरे राज्य में उत्साह और उमंग की एक लहर सी दौड़ने लगी। परन्तु वे इस बात से अनजान थे, की सातों सौतिया रानियाँ किस षड्यंत्र का ताना बाना बुन रही हैं। सातों सौतनों ने कलिंगा के गर्भ को समाप्त करने की योजना बना ली थी और कलिंगा के साथ झूठी प्रेम भावना प्रदर्शित करने लगीं। कलिंगा के मन में उन्होंने गर्भ के विषय में तरह – तरह की डरावनी बातें भर दी और यह भी कह दिया की हमने एक बहुत बड़े ज्योतिषी से तुम्हारे गर्भ के बारे में पूछा – उसके कथनानुसार रानी को अपने नवजात शिशु को देखना उसके तथा बच्चे के हित में नही होगा।
जब रानी कलिंगा का प्रसव काल आया तो उन सातों सौतों ने उसकी आंखों में पट्टी बांध दी और बालक को किसी भी तरह मारने का षडयंत्र सोचने लगी। जहां रानी कलिंगा का प्रसव हुआ, उसके नीचे वाले कक्ष में बड़ी-बड़ी गायें रहती थीं। सौतों ने बालक के पैदा होते ही उसे गायों के कक्ष में डाल दिया, ताकि गायों के पैरों के नीचे आकर बालक दब-कुचलकर मर जाये। परन्तु बालक तो अवतारी था, सौतेली माँओं के इस कृत्य का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और वह गायों का दूध पीकर प्रसन्न मुद्रा में किलकारियां मारने लगा।
उसके बाद उन सौतों ने रानी के सामने सिलबट्टा रख दिया और फिर रानी कलिंगा की आंखों की पट्टियां खोली गईं और सौतों ने उनसे कहा कि “प्रसव के रुप में तुमने इस सिलबट्टे को जन्म दिया है”, उस सिलबट्टे को सातों सौतों ने रक्त से सानकर पहले से ही तैयार कर रखा था। उसके बाद सातों सौतों ने उस बालक को मारने के लिये उसे कंटीले बिच्छू घास में डाल दिया, परन्तु यहां भी बालक को उन्होंने हंसता-मुस्कुराता पाया। तदुपरांत एक और उपाय खोजा गया कि इस बालक को नमक के ढेर में डालकर दबा दिया जाय और यही प्रयत्न किया गया, परन्तु उस असाधारण बालक के लिये वह नमक का ढेर शक्कर में बदल गया और वह बालक रानियों के इस प्रयास को भी निरर्थक कर गया। इतने पर भी जब उनका मन नही भरा तो उन्होंने उस बालक को मॊव (गाय और भैंस के मल का ढेर ) में दबा दिया, पर वह साक्षात ईश्वर रुपी बालक वहाँ भी बच गया।
अंत में जब सातों रानियों ने देखा कि बालक हमारे इतने प्रयासों के बावजूद जिंदा है तो उन्होंने एक लोहे का बक्सा मंगाया और उस संदूक में उस अवतारी बालक को लिटाकर, संदूक को बंदकर उसे काली नदी में बहा दिया, ताकि बालक निश्चित रुप से मर जाये। यहां भी उस बालक ने अपने चमत्कार से उस संदूक को डूबने नहीं दिया और सात दिन, सात रात बहते-बहते वह संदूक आठवें दिन गोरीहाट में पहुंचा। गौरीहाट पर उस दिन भाना नाम के मछुवारे के जाल में वह संदूक फंस गया। भाना ने सोचा कि आज बहुत बड़ी मछली जाल में फंस गई है, उसने जोर लगाकर जाल को खींचा तो उसमें एक लोहे के संदूक देखकर वह आश्चर्यचकित हो गया। संदूक को खोलकर जब उसने हाथ-पांव हिलाते बालक को देखा तो उसने अपनी पत्नी को आवाज देकर बुलाया। मछुआरा निःसंतान था, अतएव पुत्र को पाकर वह दम्पत्ति निहाल हो गया और भगवान के चमत्कार और प्रसाद के आगे नतमस्तक हो गया।
निःसंतान मछुवारे को संतान क्या मिली मानो उसकी दुनिया ही बदल गयी। अब बालक के लालन-पालन में ही उसका दिन बीत जाता। दोनों पति-पत्नी बस उस बालक की मनोहारी बाल लीला में खोये रहते, वह बालक भी अद्भूत मेधावी था। एक दिन उस बालक ने अपने असली मां-बाप को सपने में देखा। मां कलिंगा को रोते-बिलखते यह कहते देखा कि- तू ही मेरा बालक है- तू ही मेरा पुत्र है।
धीरे-धीरे उसने सपने में अपने जन्म की एक-एक घटनायें देखीं, वह सोच-विचार में डूब गया कि आखिर मैं किसका पुत्र हूं? उसने सपने की बात की सच्चाई का पता लगाने का निश्चय कर लिया। एक दिन उस बालक ने अपने पालक पिता से कहा कि मुझे एक घोड़ा चाहिये, निर्धन मछुआरा घोड़ा कहां से ला पाता। उसने एक बढ़ई से कहकर अपने पुत्र का मन रखने के लिये काठ का एक घोड़ा बनवा दिया। बालक चमत्कारी तो था ही, उसने उस काठ के घोड़े में प्राण डाल दिये और फिर वह उस घोड़े में बैठ कर दूर-दूर तक घूमने निकल पड़ता। घूमते-घूमते एक दिन वह बालक राजा झालूराई की राजधानी धूमाकोट में पहुंचा और घोड़े को एक नौले (जलाशय) के पास बांधकर सुस्ताने लगा। वह जलाशय रानियों का स्नानागार भी था। सातों रानियां आपस में बात कर रहीं थीं और रानी कलिंगा के साथ किये अपने कुकृत्यों का बखान कर रहीं थी। बालक को मारने में किसने कितना सहयोग दिया और कलिंगा को सिलबट्टा दिखाने तक का पूरा हाल एक-दूसरे से बढ़-चढ़कर सुनाया। बालक उनकी बात सुनकर सोचने लगा कि वास्तव में उस सपने की एक-एक बात सच है, वह अपने काठ के घोड़े को लेकर नौले तक गया और रानियों से कहने लगा कि पीछे हटिये-पीछे हटिये, मेरे घोड़े को पानी पीना है। सातों रानियां उसकी वेवकूफी भरी बातों पर हसने लगी और बोली- कैसा बुद्धू है रे तू! कहीं काठ का घोड़ा भी पानी पी सकता है? बालक ने तुरन्त जबाव दिया कि क्या कोई स्त्री सिलबट्टे को जन्म दे सकती है? सभी रानियों के मुंह खुले के खुले रह गये, वे अपने बर्तन छोड़कर राजमहल की ओर भागी और राजा से उस बालक की अभ्रदता की झूठी शिकायतें करने लगी।
राजा ने उस बालक को पकड़वा कर उससे पूछा “यह क्या पागलपन है,तुम एक काठ के घोड़े को पानी कैसे पिला सकते हो?” बालक ने कहा “महाराज जिस राजा के राज्य में स्त्री सिलबट्टा पैदा कर सकती है तो यह काठ का घोड़ा भी पानी पी सकता है” तब बालक ने अपने जन्म की घटनाओं का पूरा वर्णन राजा के सामने किया और कहा कि ” न केवल मेरी मां कलिंगा के साथ घोर अन्याय हुआ है महाराज ! बल्कि आप को भी धोखा दिया गया हैं” तब राजा ने सातों रानियों को बंदीगृह में डाल देने की आज्ञा दी। तब सातों रानियां रानी कलिंगा से अपने किये के लिये क्षमा मांगने लगी और आत्म्ग्लानि से लज्जित होकर रोने-गिड़गिडा़ने लगी। तब उस बालक ने अपने पिता को समझाकर उन्हें माफ कर देने का अनुरोध किया। राजा ने उन्हें दासियों की भांति जीवन यापन करने के लिये छोड़ दिया। यही बालक बड़ा होकर ग्वेल, गोलू, बाला गोरिया तथा गौर भैरव नाम से प्रसिद्ध हुआ। ग्वेल नाम इसलिये पड़ा कि इन्होंने अपने राज्य में जनता की एक रक्षक के रुप में रक्षा की और हर विपत्ति में ये जनता की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से रक्षा करते थे। गौरीहाट में ये मछुवारे को संदूक में मिले थे, इसलिये बाला गोरिया कहलाये। भैरव रुप में इन्हें शक्तियां प्राप्त थीं और इनका रंग अत्यन्त सफेद होने के कारण इन्हें गौर भैरव भी कहा जाता है।
चित्र सौजन्य: गूगल
Thank You