सर्वोत्तम वैदुं गुण
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चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड – १ सूत्रस्थानम , नवों ( खुड्डाक चतुष्पाद )अध्याय पद २१ बिटेन – तक
अनुवाद भाग - ७१
गढ़वालीम सर्वाधिक अनुवाद करण वळ अनुवादक – आचार्य भीष्म कुकरेती
( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों वर्जणो पुठ्याजोर )
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!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
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विद्या, वितर्क ,विज्ञान, विज्ञत्व , लग्न , क्रिया , चिकित्सा कुशलता जै वैद्यम यी छै गुण ह्वावन वैकुण क्वी बि रोग असाध्य नि छन। आयुर्वेद विद्या , विशुद्ध बुद्धि , दृढ चिकित्सा , चिकित्सा हभ्यास, अनेक रोगियों तै रोग मुक्त करणम सफलता , सद्गुरु क आश्रय एक एक गुण बि वैद पद प्राप्त करणो समर्थ छन। किन्तु जै पुरुष म इ सब गुण हूंदन वी इ सच्चेकी वैद बुले सक्यांद। यी प्राणियों तैं सुख दिंदेर हूंद। २१-२३
आयुर्वेद शास्त्र त उज्यळ करणो ज्योति च अर अपण बुद्धि आँखि । यूँ दुयुं तैं मिलैक ठीक प्रयोग करी वैद्य बिसर नि सकद। चिकित्सा का तीन चरण रोग , परिचारक अर द्रव्य सबुं वैद पर इ आसरो च। इलै अपण गुणों तैं विशेष रूप से प्राप्ति वास्ता वैद्य तै प्रयत्नशील रौण चयेंद। वैदो ब्यवार चार प्रकारौ हूंद -रोगी दगड़ मित्रता अर दया भाव; साध्य रोगीम स्नेह भाव ;मरणासन्न रोगी म उपेक्षा बुद्धि । २४-२६
चिकित्सौ चार चरण , प्रत्येक चरण का चार चार गुण,सब गुणोंम भिषक की भूमिका प्रधान च अर किलै च ? , वैदुं गुण , वैदुं चार प्रकारै बुद्धि अर ब्राह्मी बुद्धि यि सब ‘खड्डाक चतुष्पाद’ बुले गे
नवों अध्याय खड्डाक चतुष्पाद सम्पूर्ण ह्वे।
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लेन
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ १२२ ब्रिटेन तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी फाड़ीम
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